फूलों में सज रही है माँ अम्बे दुर्गे रानी

फूलो में  सज रही है, माँ अम्बे दुर्गे रानी,
ओर हाथ मे त्रिशूल है, करे सिंह कि सवारी।।

सोने का मुकुट सर पर,
लगता है कितना प्यारा,
मुख पर तेज है इतना,
सूरज में नही जितना,
ओर लम्बे लम्बे केश है,
जैसे घटा हो काली,
फूलो में  सज रही है, माँ अम्बे दुर्गे रानी,
ओर हाथ मे त्रिशूल है, करे सिंह कि सवारी।।
                                 
माथे पे बिंदिया जैसे,
चंदा चमक रहा हो,
आँखों मे ज्योती ऐसी,
प्यार बरस रहा हो,
भगतो के लिए प्यार है,
दुश्मन के लिए काली,
फूलो में  सज रही है, माँ अम्बे दुर्गे रानी,
ओर हाथ मे त्रिशूल है, करे सिंह कि सवारी।।
                                     
पुष्पो की गल मे माला,
लगती है कितनी प्यारी,
लाल चुनरियाँ ओढ़े,
भगतो के मन को भाती,
तेरे चरणों से लगा ले,
‘जांगिड़’ को माँ भवानी,
फूलो में  सज रही है, माँ अम्बे दुर्गे रानी,
ओर हाथ मे त्रिशूल है, करे सिंह कि सवारी।।                              
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