तर्ज:- इक प्यार का नगमा है
दुनिया यह स्वार्थ की कोई भी नहीं अपना है,
भाई को भाई ना समझे, समझे नहीं अपना है,
दुनिया यह स्वार्थ की.....
पैसे बिन प्यार कहां पैसे बिना यार कहां
पराया तो पराया है, अपनों का विश्वास कहां,
बेढंग जगत का चलन, अपनों में यहां है बिघन,
गर जेब में है पैसा, कहो हाल तो है कैसा,
दुनिया यह स्वार्थ की.....
जिस मां ने जन्म दिया, और पिता ने पाला है,
हालात ये हैं कैसे, उन्हें घर से निकाला है,
बीवी जब घर आए, तो मां बाप को भूले हैं,
मां बाप के जीवन को, करते वीराना है,
दुनिया यह स्वार्थ की.....