मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा,
जिधर फेरूं नज़रे उधर चाहियेगा,
मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा।
जो सारे जगत का पिता,
आसमा भी है जिससे टिका,
करे जग का पालन जो,
हर जीव जग का,
वही एक परमात्मा,
मुझको वही गिरवरधार चाहियेगा,
जिधर फेरूं नज़रे उधर चाहियेगा,
मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा।
जिसने है सब जग रचा,
खिलोने अनेको बना,
सांसो की चाबी से सबको नचाये,
वो है मदारी बड़ा,
मुझको वही मुरलीधर चाहियेगा,
जिधर फेरूं नज़रे उधर चाहियेगा,
मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा।
जिसके लिए तन धरे,
कई बार जन्मे मरे,
पाने की चाहत में आये गए हम,
पर न उसे पा सके,
मुझको वही चक्रधर चाहियेगा,
जिधर फेरूं नज़रे उधर चाहियेगा,
मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा।
जतन जितने करने पड़े,
पा के रहेंगे तुझे,
अबकी न हमसे बचोगे प्रभु तुम,
यतन चाहे जितने करो,
"राजेन्द्र" को राधावर चाहियेगा,
जिधर फेरूं नज़रे उधर चाहियेगा,
मुझे श्याम सुंदर सुघर चाहियेगा....