तेरे निशदिन जल में लेकिन,
फिर भी है मीन पियासी,
फिर भी है मीन पियासी।।
चँदा से यूँ चकोरा,
मिलने को तरसे,
ऐसे ही मेरे ये दो नैना,
मिलने को तुझे तरसे,
निशदिन ही ये बरसे,
हो आकर के दिखला दो,
प्रीतम अपनी झलक जरासी,
फिर भी है मीन पियासी,
फिर भी है मीन पियासी।।
धरती अँबर को,
कामिनी प्रियवर को,
ऐसे ही मिलने को तरसूँ,
मै अपने गुरुवर को,
हो मै अपने ईश्वर को,
एक बिरहन है जो,
तेरे दरश की,
जनम जनम की पियासी,
फिर भी है मीन पियासी,
फिर भी है मीन पियासी।।
राही मँज़िल को,
कश्ती साहिल को,
ऐसे ही मै तुमको ढूँढू,
ज्योँ प्यासा सावन को,
हो ज्यो प्यासा सावन को,
मन मँदिर में,
ज्योति जगादो,
हे प्रभू नँगली निवासी,
फिर भी है मीन पियासी,
फिर भी है मीन पियासी।।
तेरे निशदिन जल में लेकिन,
फिर भी है मीन पियासी,
फिर भी है मीन पियासी।।