जितने प्रेमी तेरे, मै सबको शीश झुकाऊँ,
किसी के अवगुण कभी ना देखूँ, गुण झोली में पाऊँ ।।
जितने प्रेमी तेरे......
दिल में कोई मैं न रहे, श्रद्धा-भक्ति बनी रहे,
सबकी इज्जत मान करूं, सबका मैं सम्मान करूं,
नींच-ऊंच मैं देखूं ना, खरा या खोटा परखूँ ना,
वैर-विरोध मिटा के भगवन, सब पे सदके जाँऊ,
जितने प्रेमी तेरे......
निर्धन है या है धनवान, सबमें तेरा रूप महान,
सबसे मीठा बोलूं मैं, ज्ञान तराजू तोलूं मैं,
जिसके घट में वास तेरा, बहन मेरी वो भाई मेरा,
सबको अपना समझू मैं, सबसे प्रीत निभाऊँ,
जितने प्रेमी तेरे......
हर गुरमुख में तेरा वास, भक्तों में तू करे निवास,
मनमत जब भरमा जाए, गुरमत यह समझा जाए,
सब सद्गुरु के प्यारे हैं, सब आँखों के तारे हैं,
तेरी ऊंची शिक्षा से मैं, हरदम अमल कमाऊँ,
जितने प्रेमी तेरे......