तन में मन में रोम रोम में, है स्वामी का वास।
निर्बल के बल पवनसुत, सिया राम के दास।।
वाह रे वाह हनुमान जी।
तन में रोम रोम में रहते हैं सिया राम जी।।
श्री रघुवीर के नाम के आगे,त्याग दीये हीरे मोती।
मेरे उर सिया राम बेस हैं, चीर के दिखलादी छाती।।
और बोले सियाराम जी राम जी।।
वाह रे वाह हनुमानजी।।
रहे हमेंशा ब्रह्मचारी और, सियाराम की भगती करे।
करे सहाय दीन दुखियों की, अभिमानी का मान हरे।।
और बोले सियाराम जी राम जी।।
वाह रे वाह हनुमानजी।।
वाह रे वाह हनुमानजी।।
है'अनुरोध' वीरवार हमको, आपके दर्शन हो जाये।
रहे न दम्भ द्वेष पर निंदा,सियाराम उर बस जाए।।
हम बोलें सियाराम जी राम जी।।
वाह रे वाह हनुमानजी।।
रचना-रामश्रीवादी अनुरोध
आष्टा मध्यप्रदेश