चली चली हो शिव की बारात चली रे,
गौरा मैया से होने मुलाकात चली रे,
हो चली चली.......
भांग धतूरा देकर रगड़ा चले भुत की टोली,
अंधे काढ़े लुड़े लंगड़े खेले भस्म की होली,
भुत प्रेत भंग पीके नाचे होके झली रे, चली चली....
हो चली चली रे शिव की बारात चली रे......
ना जाने भंडारी ने क्यों ऐसा भेस बनाया,
माथे चंदा हाथ में डमरू गले क्यूँ शेष चढ़ाया,
बड़े गजब की बात हैं बैल सवारी चली रे, चली चली....
चली चली रे शिव की बारात चली रे......
गौरा की सब संग सहेली हो गयी जब हैरान,
ये कहाँ से चलके आए बड़े अजब मेहमान,
हम नही देंगे अपनी गौरा कुसुम कली रे, चली चली....
हो चली चली रे शिव की बारात चली रे......
गौरा मैया शंकर देख मंद मंद मुस्काए,
"लाडला पवन" शिव चरण में अपना शीश नवाए,
नीलम कहे सब भक्तों की करदों भली रे, चली चली....
हो चली चली रे शिव की बारात चली रे......
स्वर व् गीत : लाडला पवन