बैरन भई रे बाँसुरिया मैं क्या करूं....
जब रे श्याम ने मुरली बजाई,
तन मन की मैंने सुद्ध बिसराई,
हो गई मैं बावरिया मैं क्या करूं,
बैरन भई रे बाँसुरिया.....
जब-जब पनिया भरन मैं जाऊं,
यमुना किनारे से वापस आऊं,,
खाली लेकर गगरिया मैं क्या करूं,
बैरन भई रे बाँसुरिया.....
हार सिंगार मोहे कछु ना भावे,
सब सखियां मिल हंसी उड़ावे,
सूनी लागे अटरिया मैं क्या करूं,
बैरन भई रे बाँसुरिया.....
मन मेरा लगा प्रभु चरणों में,
उनके कीर्तन और भजन में,
आ गई हरि की नगरिया मैं क्या करूं,
आई वृंदावन नगरिया मैं क्या करूं,
बैरन भई रे बाँसुरिया.....