मन बस गयो नन्द किशोर,
अब जाना नहीं कही और,
बसा लो वृन्दावन में....
सौप दिया अब जीवन तोहे,
रखो जिस विधि रखना मोहे,
तेरे दर पे पड़ी हूँ सब छोड़,
अब जाना नहीं कही और,
बसा लो वृन्दावन में......
चाकर बन कर सेवा करुँगी,
मधुकरि मांग कलेवा करुँगी,
तेरे दरश करुँगी उठ भोर,
अब जाना नहीं कही और,
बसा लो वृन्दावन में..........
अरज़ मेरी मंजूर ये करना,
वृन्दावन से दूर न करना,
कहे मधुप हरी जी हां जोड़,
अब जाना नहीं कही और,
बसा लो वृन्दावन में.....
प्यारे बसा लो वृन्दावन में.....
ओ मन बस गयो नन्द किशोर,
अब जाना नहीं कही और,
बसा लो वृन्दावन में....