मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
दुशासन वंस कठोर महा दुखदाई,
कर पकड़त मेरो चीर लाज नहीं आई,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
अब भयो धर्म को नाश पाप रहो छाई,
लखी अधम सभा की ओर नार विखलाई,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
रोएं रोएं के पाती लिखे रुक्मिणी नारी,
इसे वाचत पंडित लोग फटे उनकी छाती,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
मैंने छोड़े माई बाप बहन और भाई,
मैंने छोड़ा कुटुम परिवार तुम्हारे संग आई,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
क्यों छोड़े माई बाप बहन और भाई,
क्यों छोड़ा कुटुम परिवार हमारे संग आई,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....
क्यों सिर पर बांधो मोहर हाथ में कंगना,
क्यों आए बाबूल के देश अरे मन सजना,
मोहे झांकी दे जा अपने मोर मुकुट की....