आये नहीं घनश्याम हो साडी सर से सरकी

आये नहीं घनश्याम हो साडी सर से सरकी,
सरकी सरकी पांचो वर की आस लगी है मोहे गिरधर की,
आये नहीं घनश्याम जो साडी सर से सरकी.....

पाँचों पति सभा में बैठे जैसे बैठी नारी,
द्रोणाचार्य पितामह बैठे नीचे गर्दन डारी,
अपनों ने मुख मोड़ लिया है मोहे केवल आस तिहारी,
आये नहीं घनश्याम जो साडी सर से सरकी......

याद करो उस दिन की मोहन अंगुली कटी तिहारी,
फाड़ के साडी अपने तन की बाँधी तुरंत मुरारी,
बेगे पधारो नाथ हरी तुम लुट ना जाए लाज हमारी,
आये नहीं घनश्याम जो साडी सर से सरकी.....

भरी सभा में एकली थारी मैं किस्मत की मारी,
दुशासन मेरी साडी खींचे हुई शरम से मैं पानी,
पूर्ण रूप से किया समर्पण आओ ना आओ अब मर्ज़ी तिहारी,
आ ही गए घनश्याम जो साडी सर से सरकी.....
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