बस तुम्हीं मिला मन मीत

तरज़ :- कोई बिछुड़़ गया मिल के
         बस तुम्हीं मिला मन मीत,
        आके करदे मेरी जीत रे
        बस...

ये जग झुठा सपनां है,
कोई नहीं यहां अपना है,
ईक तेरे सिवा अब मनमोहन,
ग़मख़ार‌ नहीं कोई अपनां है
सुंन मेरे मन के मीत,
आके करदे मेरी जीत,
बस....

इस स्वार्थी दुनिया के अन्दंर,
दिखा ना कोई दिलदार मुझे,
ये जग झुठा सपनां है,
अब तेरा नाम ही जपनां है
स्वार्थ के सब मीत,
आके करदे मेरी जीत रे,
बस....

पागल की बात जब मानीं थी,
मोहनीं सुरत पहचानीं थी
तब ये दुनिया बैगानीं थी,
हर बात यहां अन्जांनी थी,
धसका मिल गया मनका मीत,
आके कर दी तेरी जीत,
ईक वोही मिला मन मीत....

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