कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे रेे मन मोहन मुरली वाले,
मन मोहन मुरली वाले मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....
पहला उलाहना तेरा बागों में से आया,
डाली झुकाई तूने फलो को चुराया,
तू तो फलों का चोर कहाया रे मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....
दूजा उलाहना तेरा जमुना में से आया,
कपड़े चुराये तूने पेड़ पर छुपाए,
तू तो कपड़ा चोर कहाया रे मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....
तीसरा उलाहना तेरा गोकुल से आया,
मटकी फोड़ी तूने माखन चुराया,
तू तो माखन चोर कहाया रे मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....
चौथा उलाहना ब्रज नारियों का आया,
बैया मरोड़ी तूने घूंघटा उठाया,
तू तो नटखट चोर कहाया रे मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....
पांचवा उलाहना एक गुजरिया का आया,
नैना मिलाई तूने दिल को चुराया,
तू तो दिल का चोर बताया रे मन मोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उल्हाने आवे....