घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है....
सोने की होती तो, क्या करते तुम मोहन,
ये बांस की होकर भी दुनियां को नचाती है.
घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है....
तुम गोरे होते जो, क्या कर जाते मोहन,
जब काले रंग पे ही दुनियाँ मर जाती है,
घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है....
दुख दर्दों को सहना, बंसी ने सिखाया है,
और छेद हैं सीने में फिर भी मुस्काती है,
घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है....
कभी रास रचाते हो, कभी बंसी बजाते हो,
कभी माखन खाने की मन में आ जाती है,
घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है....
जय गोविंदा जय गोपाला,
मुरली मनोहर मुरली वाला।