तर्ज - ये गालियां ये चौबारा
ये बाबोसा का द्वारा,
है स्वर्ग से भी प्यारा,
जहाँ कृपा हरदम ही बरसती,
ऐसा दरबार नही दुनिया में,
सच्चा द्वार यही....
बैठा बाबोसा वो प्यारा,
माँ छगनी का दुलारा,
इस दर पे है बिगड़ी सँवरती,
के ऐसा दरबार नही दुनिया में,
सच्चा द्वार यही....
जिस धाम की है बड़ी खूबियां,
है सुहानी चुरू की वो गलियां,
जिस दर पे मिलती है खुशियाँ,
चूरू धाम कहती उसको ये दुनिया,
जहाँ बाबोसा मेरे बिराजे,
जिनका दुनिया मे डंका बाजे,
धरती अम्बर जयकारों से गाजे,
सब नर नारी शीश झुकाये,
एकबार है चुरू आना, संग परिवार को लाना,
जहाँ भक्तो की झोलियाँ है भरती,
के ऐसा दरबार नही दुनिया में,
सच्चा द्वार यही....
जहाँ स्वर्ग सा है नजारा, उसे चुरू धाम कहते है,
एक बार जो यहाँ आया, फिर मस्ती में रहते है,
बिन मांगे सब है मिलता, जो इनके दर पे आये,
वो हरपल कृपा पाये, जो बाबोसा को रिझाये,
पलको में बसा लेना इनको, दिल मे बिठा लेना इनको,
जिनको दर्श को दुनिया तरसती,
के ऐसा दरबार नही दुनिया में,
सच्चा द्वार यही....
छुटे चाहे ये सारा जमाना, इस दर को भूल न जाना,
दरबार श्री बाबोसा का, बस तेरा यही ठिकाना,
जीवन मे हो खुशहाली, तेरी होवे रोज होगी दीवाली,
उस वक्त तू यही समझना, की बाबा ने नजर कृपा की डाली,
तेरे चरणों मे ही मुझको रहना,
यही कहती है दीक्षित रीना,
" दिलबर" तेरी रहमत बरसत
के ऐसा दरबार नही दुनिया में,
सच्चा द्वार यही....