तेरे खातिर लखदातार

दर पर बुला ले साँवरिया,
मैं तेरे दर्शन पाऊंगी,
तेरे खातिर लखदार,
रसगुल्ला भोग लगाऊँगी,
सुना है हमनें खाटू में,
दीनों के दामन भरते हैं,
एक बार जो हार के जाते,
वो ना हार से डरते हैं,
मैं भी जग से हारी बाबा,
कब कृपा से मौज उड़ाऊँगी,
तेरे खातिर लखदार,
रसगुल्ला भोग लगाऊँगी……

तीनों लोक का स्वामी,
तेरे सामने झोली फ़ैलाये,
वो ना दर से खाली लौटा,
एक बार जो आ जाए,
मेरी भी है झोली खाली,
किसके दर फ़ैलाउंगी,
तेरे खातिर लखदार,
रसगुल्ला भोग लगाऊँगी......

पिता जो बैठा जग का सेठ,
बेटी दर दर क्यों डौलेगी,
जब भी पड़े दरकार उसको,
बाप से ही ना बोलेगी,
मुझको क्या तू बेटी ना मानें,
अकेली जी ना पाऊंगी,
तेरे खातिर लखदार,
रसगुल्ला भोग लगाऊँगी…..

कृपा ऐसी कर दे बाबा,
हर एक ग्यारस आ जाऊँ,
“दत्तो” बस यही चाहे,
तेरे दर से सभी सुख पा जाऊँ,
कृपा ऐसी कर दे बाबा,
हर एक ग्यारस आ जाऊँ,
“नेहा” बस यही चाहे,
तेरे दर से सभी सुख पा जाऊँ,
दुर्गा पूजक ढाक के जैसा,
झूम झूम खाटू आऊँगी,
तेरे खातिर लखदार,
रसगुल्ला भोग लगाऊँगी……
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