ले लो ले लो रे जनक जी कन्यादान,
सिया तो राजा राम की हुई....
बड़े भाग हैं जनक तुम्हारे रघुवर मिले जमाई,
रूपवान गुणवान बहुत इनमें मुनी के यज्ञ बचाई,
अपने भक्तों का बचाते हरदम मान,
सिया तो राजा राम की हुई....
समय तुल्य समझी तुम पाए कहां तक करूं बढ़ाई,
इंद्रदेव की दशरथ जी ने रण में करी बढ़ाई,
ऐसे काहू को मिले ना मेहमान,
सिया तो राजा राम की हुई....
राम लक्ष्मण और भरत शत्रुघ्न सुंदर चारों भाई,
चार सुता है जनक तुम्हारे इनको देओ बिहाई,
तुमरो सब विधि से भयो रे कल्याण,
सिया तो राजा राम की हुई....
गुरु की आज्ञा मान जनक ने मंडप दिया कढ़ाई,
सखिया मंगल गाने लागी सिया राम को बिहाई,
समाधि समधि का बढ़ाते हरदम मान,
सिया तो राजा राम की हुई....