पांच सदी के इन्तजार को मिल कर हमे सजाना है,
जहां जगत में राम पधारे उसी अयोध्या जाना है…….
जहां हजारो राखी रोई ममता गोली खाई है,
जाने कितने संगर्शो से झुजी नित तरुनाई है,
राम के रूप में संस्कृति का वो प्रांगन प्रीत सजाना है,
जहां जगत में राम पधारे उसी अयोध्या जाना है…….
जाने कितने सत पर्यास से ये शुभ वेला आई है,
कितने रूप दल दले गए है तब ये मेला भई है,
कितने सूत बलिदान हुए फिर कितने आंसू बहाए है,
कितनो ने फिर करी तपस्या तब हम ये दिन पाए है,
अपने घर को समज अयोध्या सज के दीप जगाना है,
शीला न्यास के बाद दर्श को उसी अयोध्या जाना है……..
राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन हनुमत याहा महान हुए,
जिन गलियों में चले राम श्री मर्यादा अभिमान हुए,
भारत माँ के जो बालक माँ सरयू तट बलिदान हुए,
हम है साक्षी वो भी युग के मंदिर भव्य बनाना है,
जहां जगत में राम पधारे उसी अयोध्या जाना है……..