म्हारा रुनिजारा राम

म्हारा रुनिजारा राम, म्हारा रुनिजारा राम।
थारो बिगड़ी बणादे असो नाम।।

कोढ़िन को काया दीन्हीं अंधे को आँख रे।
गूँगे को बाचा दीन्हीं लँगड़े को पाँव रे।।
देवल में बैठ्या बैठ्या करे सारो काम।।

बाँझन को पुत्र दीन्हों निर्धन को दाम रे।
जो भी गाये खम्मा खम्मा बण जाए काम रे।
थारी दया को बाबा पार नहीं राम।।

कांय करी धूप बाबा कांय करी छाँव रे।
'अनुरोध' पर्वत जंगल कांय बस्या गाँव रे।
तू हो सबेरो करता तू ही करे साम।।

रचना-रामश्रीवादी अनुरोध        
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