तर्ज - पारम्परिक
कैसे दर तेरे आऊं मेरी समझ में कुछ न आये,
ओ बाबोसा चूरूवाले तेरी याद मुझे तड़फाये.....
चूरू धाम जाने की मुझको लागी लगन,
दर्श तेरा पाने को हो रहा मन ये मगन,
मंतर ऐसा घुमादो बाबोसा कोई रस्ता निकल आये,
कैसे दर तेरे आऊँ.....
चूरू की पावन रज को मस्तक पर में लगाऊँ,
तेरी शरण मे आकर भक्ति में रम जाँऊ,
मेरे दिल की सदा तेरे कानो में पड़ जाये,
कैसे दर तेरे आऊँ.....
चूरू के मंदिर में तेरा चल रहा होगा कीर्तन,
भजन प्रवाहक सुना रहे होंगे बाबोसा भजन,
काश मेरी किस्मत मुझको तेरे दरबार ले आये,
कैसे दर तेरे आऊँ.....
कलयुग के अवतारी सुनलो अर्ज हमारी,
दर पे बुलाओ ना बुलाओ मर्जी अब है तुम्हारी,
याद में पागल होकर मेरे नैना अश्क बहाये,
कैसे दर तेरे आऊँ.....
भेष बदलकर आया माँ छगनी का लाला,
"दिलबर" क्यो घबराये तेरे साथ है चूरू वाला,
बैठ गाड़ी में जल्दी ये गाड़ी चूरू जाये,
अब ये समझ मे आया बाबोसा दरश दिखाये,
बाबोसा खुद चलकर मुझे लेने को है आये.....