है तेरे अहसानों का मुझे गणपति जी अहसास

है तेरे अहसानों का मुझे गणपति जी अहसास,
फिर से आया हूं शरण में लेकर मन आस,
लेकर मन में आस करो दूर विघ्न सब मेरे,
विघ्नहर्ता कौन हरेगा सब बिन अब तेरे,
विघ्न नाशक करदे मेरे सब विघ्नों का नाश,
फिर से आया हूं शरण में लेकर मन आस,
है तेरे अहसानों का मुझे गणपति जी अहसास.....

आ गया हूं शरण में लिए बना चरणों में डेरे,
सुखकर्ता तुम्हारे होते कैसे मुझे दुःख सब घेरे,
दया दृष्टि रहे तेरी तो सुख सब रहें मेरे पास,
फिर से आया हूं शरण में लेकर मन आस,
है तेरे अहसानों का मुझे गणपति जी अहसास,
है तेरे अहसानों का राजीव को गणपति जी अहसास,
फिर से आया हूं शरण में लेकर मन में आस.....

©राजीव त्यागी
   नजफगढ़ नई दिल्ली
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