बंदिशें इस जमाने की मैं, सारी तोड़ आया हूं,
हार कर सांवरे जग से, तेरे दरबार आया हूं,
ये झूठा है जहां सारा , यहां मतलब के सब रिश्ते,
इसी मतलब की दुनिया से, मैं रिश्ता तोड़ आया हूं.....
तू हारे का सहारा है, जहां सारा ये कहता है,
जो जग से हारकर आते, तू उनके संग रहता है,
अमर तेरी कहानी है, ऐ बाबा शीश के दानी,
तेरी गाथा को सुनकर ही, मैं खाटु धाम आया हूं......
मेरी मझधार मे नैया, खिवैया आप बन जाओ,
जो अटकी नाव है मेरी, उसे तुम पार ले जाओ,
किनारा जो ना दोगे तो, भला कैसे जी पाऊँगा,
मेरे दिल में मैं ले करके, यही इक आस आया हूं.....
जल्दी से आजा सांवरिया ये दिल घबरा रहा मेरा ,
मुझे बस इस जमाने में सहारा एक है तेरा,
भटक कर अश्विनी दर दर, तेरी चौखट पर आया है,
मुझे तू ही संभालेगा ,यही विश्वास लाया हूं.....
लेखक:- अश्विनी बंसल