सप्तम कालरात्रि माँ नवदुर्गा अवतार

सप्तम कालरात्रि माँ नवदुर्गा अवतार

सप्तम कालरात्रि माँ ,नवदुर्गा अवतार।
सातवें नवरात्र इसी,रूप का हो दीदार।।
कृष्ण वर्ण कालरात्रि ,काला है स्वरूप।
भय खावे महाकाल भी ,देख भयानक रूप।।
बिखरे सिर के बाल हैं ,गले चमकती माल।
लम्बे नख लम्बी जीभा ,रूप महा विकराल।।
खप्पर खण्डा धारिणी ,कांटा और कटार।
चत्रभुजी त्रिनेत्र ,गर्दभ पर असवार।।
सांसों से बरसें सदा ,अग्नि के अंगार।
फिर भी शुभकारी मात के ,शुभ शुभ हैं दीदार।।
महाकाली कालरात्रि ,करे काल का नाश।
भूत प्रेत पिशाच ग्रह ,निकट कभी न आत।।
चण्डी चामुण्डा कालका ,करे असुरन संहार।
भद्रकाली कालेश्वरी ,बरसे सुख अपार।।
पूजन कालरात्रि का ,हर ले विघ्न विकार।
खुल जाते ब्रह्माण्ड में ,सिद्धियों के सब द्वार।।
शुद्ध तन मन शुद्ध भाव से ,धरे ‘‘मधुप’’ जो ध्यान।
रूप विजय यश कीर्ति ,पावे मुक्ति दान।।


download bhajan lyrics (158 downloads)