सुनो सुनो सुनो सुनो
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
एक समय की बात है एक सेठ बड़ा धनवान था
सारे नगर में हर कोई उसका करता आदरमान था
दयालु और दानी उसका मन बड़ा ही निर्मल था
शिव की भक्ति में वो खोया रहता हर एक पल था
बड़े नियम से निस दिन वो शिव के मंदिर जाता था
श्रद्धा भाव से करता पूजन शिव का ध्यान लगाता था
खाते पीते सोते जागते बम बम भोले कहता था
इतनी भक्ति करने पर भी चिंता में वो रहता था
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
एक दिन माँ पारवती बोली भोले बाबा से
मन थी एक बात जो खोली भोले बाबा से
सच्ची श्रद्धा से आपका करता सच्चा ध्यान है
फिर भी स्वामी सेठ ये रहता क्यों परेशान है
भोले बाबा बोले इसके घर कोई संतान नही
सेठ के बाद इसका आगे चलना खानदान नही
वैसे सेठ के जीवन आना कोई दुःख नही
पर कभी संतान का मिलना इसको सुख नही
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
बोली माता पार्वती स्वामी ये अन्याय है
सच्चा है ये भक्त आपका देना इसको न्याय है
स्वामी सेठ की पीड़ा का कोई हल तो देना होगा
सेवक है ये आपका इसको भक्ती फल तो देना होगा
सुनके विनती पार्वती की भोले बाबा थे मुस्काये
दोनों मंदिर आ पहुंचे तो शिव ने ऐसे वचन सुनाये
तुम जो कहती हो तो देवी पुत्र इसे मिल जाएगा
बारह वर्ष की आयु होगी फिर वो मृत्यु पायेगा
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
ये सब सुनके सेठ को ख़ुशी हुई ना दुःख हुआ
करता रहा वो नित्य पूजन शिव से ना बेमुख हुआ
कुछ समय के बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई
खुशियों के थे आंसू चलके वो प्रसन्न आती हुई
लेकिन सेठ ने कोई भी यज्ञ किया ना खुशी मनाई
ना हस्ता ना रोता था वो गुमसुम देता सदा दिखाई
जिसदिन घर में सेठ के पुत्र ने था जनम लिया
उसदिन सबने ख़ुशी मनाई ढोल बजाये भाजन किया
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
उस ख़ुशी के पल सेठ बड़ा उदास था
वो बालक की आयु को लेकर बड़ा निराश था
अपने मन में रखा दबाके भेद किसी को बताया ना
भक्ति पूजा करता रहा सेठ वो घबराया ना
हँसते खेलते बालक जब ग्यहराह वर्ष का हो गया
घटती उसकी आयु देखके वो चिंता में खो गया
बालक की जो माता थी खुश बड़ी थी रहने लगी
अब हम इसका ब्याह रचाएं सेठ से वो कहने लगी
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
सेठ बोलै पत्नी से विवाह बाद में देखेंगे
पहले अपने बालक को काशी पढ़ने भेजेंगे
तभी सेठ ने बालक के मां जी को बुलवाया
उसको धन की थैली सेठ ने था समझाया
तुम मेरे को काशी पढ़ने ले जाओ
रस्ते में तुम जहां रुको हवन कराओ यज्ञ रचाओ
साधू संत ब्राह्मणो को दे संदेसा बुलवाना
सबको वस्त्र दक्षिणा देना श्रद्धा से भोजन करवाना
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
दोनों मां भांजा मिलके यगण रचाते जा रहे
साधू संत ब्राह्मणो को भोज कराते जा रहे
आगे उनके रस्ते में नगर था आया
उस नगर के राजा ने था बेटी का ब्याह रचाया
राज कुमारी ब्याहने को जिस लड़के ने आना था
राज कुमार था पर वो एक काना था
लड़के के पिता ने ये भेद सबसे छुपाया था
बात कहीं ये खुल ना जाए अंदर से घबराया था
सोच रहा था टल ना जाए शादी है जो होने वाली
कन्या के माता पिता कहीं लोटा ना दें खाली
इसी चिंता में जो उसको सेठ का लड़का दिया दिखाई
उस लड़के को देखा तो उसके मन में युक्ति आयी
क्यों ना इसको ही दूल्हा हम बनाकर ले जाएँ
शादी के पंडाल में इसको घोड़ी बैठकर ले जाएँ
उसने लड़के के मां को सारा अपना भेद बताया
हाथ जोड़के मिन्नत करके उसने मां को मनाया
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
घोड़ी पर बिठाकर उसको दरवाजे तक ले आये
फिर सोचा आगे का भी काम इसीसे करवाएं
उसने लड़के के मामा को मिन्नत करके फिर मनाया
फेरे और कन्यादान तक उसी को बैठाया
ख़ुशी ख़ुशी जब शादी के सारे कारज हो गए
मामा भांजा दोनों मिलके काशी के रस्ते को गए
पर जाने से पहले लड़के ने कुछ ऐसा काम किया
उसने राजकुमारी की चुनरी पे सब लिख दिया
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
वैसे तो ये शादी तेरी हुई मेरे साथ है
वो लड़का है काना जिसको देना तेरा हाथ है
झूठे हैं वो लड़के वाले तुमसे सच बता रहा हूँ
में तो मामा के संग आगे काशी पढ़ने जा रहा हूँ
राज कुमारी ने वो सारा लिखा हुआ था पढ़ लिया
उसने डोली में जाने को साफ़ मना था कर दिया
जिससे शादी हुई है मेरी वो तो काशी गया चल
उसी का रास्ता देखूंगी में आएगा वो कब भला
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
राजकुमारी ने पिता को सारा सच बता दिया
राजा ने बारात को खाली ही लोटा दिया
उधर लड़का मामा के संग काशी नगरी पहुँच गया
गुरुकुल जाकर विद्या वो पाने में था जुट गया
जिस दिन लड़का सेठ का हुआ बारह वर्ष का
यज्ञ भंडारा चल रहा था समाया बड़ा था हर्ष का
और लड़के ने अचानक मामा से आकर कहा
मेरी तबियत ठीक नहीं उसने घबराकर कहा
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
मामा के कहने पर वो अंदर जा कर सो गया
मामा ने आकर जब देखा वो मुर्दा था हो गया
ये देखके मामा को हुआ बड़ा ही दुःख था
रोना धोना नही किया बंद किये वो मुख था
सोच रहा था बहार वो पता यदी चल जाएगा
सफल भंडारा ना होगा कोई कुछ ना खायेगा
चुपचाप उसने सारा भंडारा था निपटाया
भांजा मेरा नहीं रहा बाद में था चिल्लाया
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
उसके रोने की आवाज़ आ रही थी जहां से
भोले बाबा पार्वती विचर रहे थे वहाँ से
पास जाकर देखा माता पार्वती हैरान हुई
बालक है ये सेठ का सोचकर परेशान हुई
पार्वती माँ बोली हे स्वामी इसका कष्ट हरो
मृत पड़ा है बालक जो इसको जीवित आप करो
भोले बाबा बोले देवी ऐसा ना हो पायेगा
आयु अपनी जी चूका अब ना वापिस आएगा
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
पार्वती माँ बोली इसके प्राण जो ना आएंगे
बालक के माता पिता तड़प तड़प मर जाएंगे
ये सब सुनके भोले बाबा ने फिरसे वरदान दिया
सेठ के उस बालक को लंबा जीवन दान दिया
फिर वो लड़का और मामा दोनों वापिस चल दिये
रस्ते में फिर यज्ञ कराये बड़े बड़े भण्डार किये
जहां हुई थी शादी उसकी नगर वो ही फिर आया
राजा को जब पता चला उनको महलों में लाया
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
राजा बोला लड़के से तू ही मेरा जमाई है
मेरी कन्या की संग तेरे होनी आज विदाई है
बड़े प्रेम से राजा ने उनका आदरमान किया
हाथी घोड़े दास दासियाँ और बड़ा धन दान दिया
अपने घर जब वो लड़का दुल्हन लेकर आता है
उससे पहले मामा उसके घर बतलाने जाता है
इधर सेठ और सेठानी छत पर चढ़े होते हैं
अपनी जान देने को दोनों खड़े होते हैं
सुनो सुनो जी कथा सुनो सोमवार की कथा सुनो
बाल हमारा घर आया तो तब ही नीचे आएंगे
बुरी खबर जो आयी तो छत से कूद जाएंगे
शपथ पूर्वक मामा ने उनको जब था समझाया
जल्दी से वो आये नीचे मन था उनका हर्षाया
वह बेटे को घर लाये अपने लगाकर सीने वो
मिलजुलकर सारे लगे खुशी खुशी से जीने वो
सोमवार की व्रत कथा शिव ने जो सुनाई है
सोनू सागर क्या लिखता शिव ने ही लिखवाई है
श्रद्धा से जो व्रत कथा सुनेगा और गायेगा
मनोकामना पूर्ण होगी शिव की कृपा वो पायेगा
बोलिये शंकर भगवन की
जय