जो पाया वो कृपा से तुम्हारी
तुमने दिया मुझे अपार I
सदा मानूं एहसान तुम्हारा
तुम्हारा मुझपे बड़ा उपकार II
सदा ही हरे विघ्न मेरे
तुमने ओ मेरे विघ्नहार I
आके तुम्हारी शरण में हुआ
सदा कष्टों का मेरे निवारII
सदा मानूं एहसान तुम्हारा
तुम्हारा मुझपे बड़ा उपकार
जो पाया वो कृपा से तुम्हारी
तुमने दिया मुझे अपार
एक चाह है मेरे मन की
उसे भी पूरी कर दो भरतार I
दर्शन का तुम्हारे मेरे गणपति
है राजीव बड़ा तलबगार II
सदा मानूं एहसान तुम्हारा
तुम्हारा मुझपे बड़ा उपकार
जो पाया वो कृपा से तुम्हारी
तुमने दिया मुझे अपार
©राजीव त्यागी