हरि कै गयो बंटाढार रे।
इकली कालि कूल-कालिंदी लखत रही जलधार रे।
तहँ आयो घूमत अति झूमत, नटखट नंदकुमार रे।
देखत ही देखत देखत ही, द्वै दृग है गये चार रे।
कह्यो मोहिं प्यारी नथवारी!, मोते करि ले प्यार रे।
इकटक लागि 'कृपालु' टकटकी, सुधि बुधि देह बिसार रे।।
भावार्थ - एक सखी कहती है कि श्यामसुन्दर ने गज़ब कर दिया। मैं कल अकेली ही यमुना के किनारे जलधारा देख रही थी। इतने में ही वहाँ पर नन्दकुमार झूमती हुई चाल से, घूमते हुए आ गये। मेरे देखते ही देखते दो आँखें चार हो गयीं। उन्होंने मुझसे कहा - "ओ नथवारी प्यारी! मुझसे थोड़ा-सा प्यार कर ले।" 'श्री कृपालु जी' के शब्दों में, सखी कहती है कि मुझसे तो रहा ही नहीं गया। मुझे अपनी ही सुध-बुध नहीं थी, एकमात्र टकटकी लगाकर एकटक देखती ही रही।
पुस्तक : [प्रेम रस मदिरा] (मिलन माधुरी)
पृष्ठ संख्या : 305
पद संख्या : 67
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