आरती श्री गंगे भव तारिनी ।
कलिमल हरनी, सर्व सुख करनी,
मोक्षमयी त्रिताप निवारिनी।।
विष्णुपदी जय ब्रह्मसरूपा,
जै जाहनवी गंगे जलरूपा,
तीर्थ मात सुरसरी अनूपा,
जय भगीरथी, पितर उद्घारिनी
आरती श्री गंगे० -
तन सिन्दूर सिर मुकुट सुहावे,
घट्ट अरु फूल शोभा अति पावे,
देख रूप चन्दा शरमावे,
मुस्कावत हरिप्रिय आहलादिनी
आरती श्री गंगे० -
अनहद नाम धाम सुखराशी,
कलियुग मोक्ष की पूर्णमासी,
धन धन मात कहें सब वासी,
सुरनर ऋषि मुनि सब ध्यावें,
आरती श्री गंगे० -
तीन लोक तेरो यश गावें,
वेद पुराण पार नहीं पावें,
बहे भारत त्रिलोक पाविनी
जीव जन्त रक्षपाल स्वामिनी
आरती श्री गंगे० -
दर्शन ध्यान स्नान करे जो,
पूजा पाठ गुणगान करे जो,
पुण्य धर्म पिण्डदान करे जो,
दे निजधाम 'मधुप' मन-भावनी
आरती श्री गंगे