राधा गोविंद गीत
राधे राधे गोविंद गोविंद राधे।
राधे राधे गोविंद गोविंद राधे।।
श्री गुरु चरणों में गोविंद राधे।
सिर को ही नहिं मन को भी झुका दे॥
श्री गुरु चरणों में गोविंद राधे।
तन मन धन अर्पण करवा दे॥
गुरु की कृपा बिनु गोविंद राधे।
कोटि साधन करु हरि कछु ना दे॥
गुरु जो प्रसन्न हो तो गोविंद राधे।
हरि हो प्रसन्न बिनु भक्ति बता दे॥
गुरु की शरण गहो गोविंद राधे।
गुरु की मुट्ठी में हरि हैं बता दे॥
गुरु यदि रूठ जाये गोविंद राधे।
कोटि करो भक्ति हरि अँगूठा दिखा दे॥
सारा विश्व दान करो गोविंद राधे।
तो भी गुरु ऋण ते ना उऋण करा दे॥
गुरु जो भी सेवा ले ले गोविंद राधे।
गर्व जनि करो आभार जना दे॥
गुरु ने जो दिया ज्ञान गोविंद राधे।
कोटि प्राणदान भी ना उऋण करा दे॥
गुरु पद सेवा करो गोविंद राधे।
गुरु पद सेवा प्रेम मेवा दिला दे॥
हरि की कृपा जो चह गोविंद राधे।
तन मन धन गुरु सेवा में लगा दे।।
तन मन धन धन्य गोविंद राधे।
जो हरि गुरु सेवा में लगा दे।।
हरि गुरु ही हैं मेरे गोविंद राधे।
ऐही नित सोचना उपासना बता दे।।
तेरे उपकारों का गोविंद राधे।
आभार माना नहिं मानना सिखा दे।।
कैसे रिझाऊँ तोहिं गोविंद राधे।
प्रेम से हूँ निर्धन धनी तो बना दे।।
पुस्तक : राधा गोविंद गीत
अध्याय : महापुरुष
पृष्ठ संख्या : 155
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