धुन- आरती कुंज बिहारी की
आरती असुर निकंदन की।
पवनसुत केशरी नंदन की ।।
1.ज्ञान के सागर हैं हनुमंत।
पड़े पद युगल उपासक संत।
कमल हिय राजै सिय-भगवंत ।।
परमप्रिय-2
परमप्रिय भक्त शिरोमणि की ।।
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
आरती असुर निकंदन की।
पवनसुत केशरी नंदन की ।।
2.सीय-रघुवर के तुम प्यारे।
साधु-संतन के रखवारे।
असुर कुल के तुम संहारे।
परमबल-2
परम बलवान शिरोमणि की ,
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
आरती असुर निकंदन की।
पवनसुत केशरी नंदन की ।।
- बुद्धि,बल,विद्या वारिधि तुम।
बिगड़े सब काज सवारे तुम।
विभीषण के रखवारे तुम।
परम गुरु-2
परम ज्ञानी, विज्ञानी की ,
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
आरती असुर निकंदन की।
पवनसुत केशरी नंदन की।।
4.सिया के बिगड़े संवारें तुम।
राम सेवा मतवाले तुम।
लखन के रखवाले हो तुम।
समर्पित-2
समर्पित त्यागी दानी की ,
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
आरती असुर निकंदन की।
पवनसुत केशरी नंदन की।।
5.धनुर्धर पूजक-पूज्य हो तुम।
सखे गोविन्द के प्यारे तुम।
युद्ध में ध्वज रखवारे तुम ।
परम श्री-2
परम रक्षक बलिदानी की,
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
आरती असुर निकंदन की।
पवन सुत केशरी नंदन की ।।
लेखक एवं गायक - डॉ गोविंद देवाचार्य जी महाराज ( पूज्य बाबा श्रील)