सुनो दुःख हमारी,
गुरु दीनवत्सल,
भटकाता फिराता,
मेरा मन ये चंचल ।
षट् बैरी पीछे,
पड़े मेरे गुरुवर,
मिटा दो व्यथा को,
मचाया जो हलचल ।।
गुरुदेव हे हमारे,
विपदा मेरी मिटा जा ।
बनके तमारी आजा,
तम अंध को मिटा जा ।
मझधार में है नैया,
तुम पार भव करा जा ।।
गुरुदेव...
विषयों ने जब सताया,
माया ने भी नचाया ।
तब पद कमल में आया,
अपना मुझे बनाजा ।।
गुरुदेव...
दुनिया को मैंने देखा,
पाया है सिर्फ धोखा ।
खुले ज्ञान का झरोखा,
ऐसा दिया जलाजा ॥
गुरुदेव ...
कर दो कृपा तनिक ही,
बनूँ भक्ति का रसिक ही ।
सत्मार्ग का पथिक ही,
हरि से लगन लगाजा ॥
गुरुदेव...
छाया हो कर कमल की,
मन-बुद्धि हो अमल की ।
सोचे न कान्त छल की,
फिर श्याम से मिलाजा ॥
गुरुदेव...
रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज
स्वर : विप्र अमित सारस्वत जी