जगत जिसका ये कुल वनाया हुआ है
वही सब घट मे समाया हुआ है
और दूसरा ना तुमसा जगत मे, तुमसा जगत मे
अपने मे आप ही भुलाया हुआ है
हरी एक से होंगे रंग-बिरंगे ,रंग बिरंगे
यह जलवा होने का दिखाया हुआ है
है ताकतउसी में मुंह खोलने की,मुंह खोलने की
भेद संतो से जो पाया हुआ है
धर्मी दास अपनी उनकी फिक्र में, उनकी फिक्र में
करोड़ों की दौलत लुटाया हुआ है
प्रेषक-नरेन्द्र वैरवा(नरसी भगत)
8905307813
रमेशदास उदासी जी
गंगापुर सिटी।