श्लोक:
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥
तन में मन में बसे बिहारी, हे गिर्राजधरण वनवारी
तुम्हरे दरस को व्याकुल नैना, ढूंढें तोहे गली चौबारी
तन में मन में
मेघ वरण मंगल करण, तुम गिर्राजधरण
बिनती सुनो मोरी हे वनवारी, रखियो लाज हमारी
तन में मन में
कमल नयन अति कोमल चरण, हे राधारमणा
हे कृपालु भक्तन भयहारी, आए शरण तिहारी
तन में मन में _