फ़सी भँवर में थी मेरी नैया चलाई तूने तो चल पड़ी है,
पड़ी जो सोइ थी मेरी किस्मत वो मौज करने निकल पड़ी है,
फ़सी भँवर में थी मेरी नैया
भरोसा था मुझको मेरे बाबा यकीन था तेरी रेहमतो पे,
था बैठा चौकठ पे तेरी कब से निगाहें निर्धन पे अब पड़ी है,
फ़सी भँवर में थी मेरी नैया...
सजाऊ तुझको निहारु तुझको पखारू चरणों को श्याम तेरे,
मैं नाचू बन कर के मोर बाबा ये भावनाये मचल पड़ी है,
फ़सी भँवर में थी मेरी नैया....
हसे या कुछ भी कहे ज़माना जो रूठे तो कोई गम नहीं है,
मगर जो रूठा तो लेहरी मुझसे भहे गई अश्को से ये झड़ी है,
फ़सी भँवर में थी मेरी नैया