सती नारी का सत बलवान

सती नारी का सत बलवान
जिन से हार गए भगवान

सुनिएगा जरा गौर से वो ये सती कहानी
वो ब्रम्हणी वो लक्छमी वो गौरा थी रानी
ब्रम्हा महेश विष्णु से यू कर के बहाने
बन ठन के चली तीनो सती मिल के नहाने
जा पहुंची छोर सागर तीनो सती नारी
अस्नान लगी करने वो हो हो के उघारी
इतने में टहलते हुए नारद जी आगये
देखा नहाते नग्न बिचारे लजा गए
हुए नारद बड़े परेशान
जिस से हार गए भगवान

मुंह फेर के नारद मुनि ने अपना यू कहा
यू नग्न नहाना कहो किस वेद में लिखा
एक बताता हु तुम्हे आज देवियों
सतियो का पहला सत है आराम लाज देवियों
अनसुईया को तो जानती होगी जरूर तुम
हो उसकी नही देवियों चरणों की धूल तुम
तुम से उत्तम है उसकी सान
जिससे हार गए भगवान

नारद मुनि की सुनके ये जहर भरी बोली
तीनो सती के मन में लगी जिस तरह गोली
घर जाके आपने पतियों से कहने लगी कथन
सैया जो हमे चाहो तो मानो मेरा वचन
अंनसुइया का सतभंग जो तुम ना करो पिया
ताज देंगे प्राण फोड़ के पत्थर पे सर पिया
तीनो वो तिरिया हठ से लाचार होगए
अंनसुइया के घर जाने को तैयार होगए
हुए भगवान बड़े परेशान
अब हार गए भगवान

साधु का भेस धर के चले तीनो देवता
बालू से अपने अपने कमंडल को भर लिया
जा पहुंचे तीनो साधु अंनसुइया के द्वारे
भूखे है कई रोज से ये मिल के पुकारे
अनसुईया का ये सुनके वचन दिल तड़प उठा
अनसुईया ने कर जोड़ के तीनो से ये कहा
आसन लगाओ बाबा मैं भोजन बनाऊंगी
खाने की जो इच्छा है वो फ़ौरन बनाऊंगी
भूखे जाए ना मेरे मेहमान
जिससे हार गए भगवान

अनसुईया के सुन के खुसामद भरा वचन
तीनो ही महात्मा हुए दिल में बड़े मगन
आगे बढ़ा के तीनो कमंडल लगे कहने
इन चल अगन के बालू का हलवा बने
मानो हमारी सर्त खिलाना है जो खाना
साधु के आशीर्वाद से तुम भरलो खजाना
अनसुईया ने फिर सच का करिश्मा दिखा दिया
बालू जो कमंडल में था हलुआ बना दिया
सच के पलड़े में तुलता ईमान
जिससे हार गए भगवान

फिर कहने लगी हलुआ है तैयार लीजिए
किस बात की है देरी प्रभु अब तो लीजिए
बोले वो और एक है सर्त हमारी
कपड़े उतारो तन के और होजाओ उधारी
फिर होके नग्न वेश में तीनो को बिठाओ
हलुआ फिर अपने हाथ से तीनो को खिलाओ
अंनसुइया मारे क्रोध के गुस्से में जल गई
साधु है या सैतान मन में सोचने लगी
ईश्वर की किया ध्यान तो उसको हुई खबर
ये तीनो साधु ब्रम्हा विष्णु और है संकर
छलने आए है मेरा ईमान
जिससे हार गए भगवान

अनासुइया ने फिर सत का करिश्मा दिखा दिया
तीनो को छै महीने का बालक बना दिया
बालक बने उन्हें तो कई दिन गए गुजर
ब्रम्हा महेश विष्णु जब वापस ना गए घर
तब उनकी तीनो नारिया चिंतित बहुत हुई
अपने पति को ढूंढने घर से निकल गई
जा पहुंची तीनो नारिया अनासुईया के द्वारे
केहने लगी आए क्या पति देव हमारे
अनासिया बोली कौन हो आई हो कहां से
तीनो सती ने मिल के कहा दबती जुवां से
ये ब्रम्हनी ये लक्ष्मी ये पार्वती है
ब्रम्हा महेश विष्णु हम तीनो के पति है
अनासुईय गई पहचान
जिससे हार गए भगवान

अनसुईया बोली साधु तीन आए है कोई
पहचान लो यही है या फिर दूसरे कोई
ले जाके तीनो साथ में पलना दिखा दिया
तीनो सती को देख के अचरज बहुत हुआ
अनसुईया बोली सोचती हो क्या बताओ तुम
सतवंती हाेतो सच का करिश्मा दिखाओ तुम
हुई तीनो बड़ी परेशान
जिससे हार गए भगवान

तीनो ने हाथ जोड़ के अनसुईया से कहा
अपराध होगया है बेहन करदो अब छमा
अंनसुइया ने भगवान को सुमिरा जो एकबार
आए है असली रूप में होने लगी जैकार
ब्रम्हा महेश विष्णु ने बोले यही बानी
अनसुईया तेरे सत का जग में कोई नही सानी
फिर हशते हुए लौट गए तीनो ही प्राणी
खंजर कलम को रोकी हुई खत्म कहानी
अनसुईया तू जग में महान
जिस से हार गए भगवान

H K PYASA
W_9831228059

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