श्री जम्भ चालीसा
दोहा
वंदो श्री जम्भ देव को,
अलख अजोनी ईश।
पारब्रह्म परमात्मा,
पूर्ण विश्वा बीस ।
शब्द भेद जानू नहीं,
मैं हू निपट गिवार।
जुगती मुगती मोही दीजियों,
संशय हरो अपार।
जय जम्भेश्वर जय गुरुदेवा।
सत चित आनंद अलख अभेवा।
लौहट घर अवतार धराया।
माता हंसा लाड लडाया।।
सकल सृष्टि के तुम हो स्वामी।
घर घर व्यापक अंतर्यामी।।
ब्रह्मा विष्णु अरु महादेवा।
ये सब करे आपकी सेवा।।
सूर नर मुनी जन ध्यान लगावे।
अलख पुरुष थारो भेद ना पावे।
हाड़ मास लौहु नहीं।
आप ही ब्रह्मा आप ही माया।।
दस अवतार आप ही धारा। त्रिलोकन के संकट टारा।।
पिपासर हरि ले अवतारा।
क्षत्री वंश कुल गोत पंवारा।।
जोत निरंजन अटल सवाई।
धर्म उबारण आये सांई।।
सात वर्ष तक बालक लीला।
गऊ चराई बनकर ग्वाला।।
लौहट जी को परचा दीन्हा।
जल बरसाय कलश भर लीन्हा।
माया थारी फौज बणाई।
धाडेती से गाय छुड़ाई।।
दूदा राव जी राज गंवायो।
पुनः गुरूजी राज दिलायो।।
तेजाजी का कोढ़ हर लिन्हा।
कवि कान्हा को पुत्र दीन्हा।।
भूआ तांतू का मान बढ़ाया।
परम तत्व का ज्ञान कराया।।
सिकंदर का गर्व मिटाया।
हक की रोज़ी जीमण धाया।।
तरड़ जात बाजो आजमाया।
तज अभिमान शरण में आयो।।
मलेर कोटला गाय हन्नता।
रीत बुरी का कर दिया अंता।।
रावल जैतसिंह पेट का रोगी।
जम्भगुरुजी किया निरोगी।।
आक के आम लगाया स्वामी।
अधर धार बरसाया पानी।।
बिंदे का अहंकार मिटाया।
जल का गुरूजी दूध बणाया।।
लक्ष्मण पांडू गोत गोदारा।
जैसाणे में किया पसारा।।
पुलहे जी को स्वर्ग दिखाया।
नौरंगी को भांत भराया।।
हासम कासम दर्जी जाया।
दिल्ली जाकर मुक्त कराया।।
मोहम्मद खा करी जीव की चर्चा
तुरन्त गुरूजी दीन्हा परचा।।
काजी मुल्ला सब चकराया। हाथी का गुरू भेड़ बनाया।।
लोहा पांगल लक्ष्मण सैसा।
खींयो भींयों रत्ना जैसा।।
खेमणराय और सांगा राणा।
मोती मेघ मल्लू बलवाना।।
झाली रानी अतली ऊदा।
नाथों रेडोकुलचंद बीदा।।
क्या योगी सन्यासी नाथा।
सब सत्गुरु का लिन्हा साथा।।
उनतीस नेम का धर्म बताया।
ऋषि मुनि सबके मन भाया।।
लालासर में रूप समाया।
हरी कंकेड़ी आसन्न लगाया।।
कहां लग महिमा वर्णू थारी। नेती नेती कह जिह्वा हारी।।
भूत पिशाच दूर हो जावे।
जम्भ गुरु की शरण में आवे।।
हवन जोत नित करे जो कोई।
मन बुद्धि चित निर्मल होई।।
विष्णु नाम जो जपे सवेरा।
रिद्धि सिद्धि घर करे बसेरा।। नेम रखे गुणतीस ये जोई।
काल जाल नहीं नहीं व्यापे कोई
जो कोई शरण आपकी आवे।
जन्म जन्म के पाप नसावे।।
जम्भ चालीसा जो कोई गावे। जम्भ गुरु की कृपा पावे।।
निर्मल मन गुरु महिमा गावे।
सच्चिदानंद थारो पार न पावे।।
दोहा*
"भगवो भेष सुहावनो,
मां हंसा के लाल।
लोहट जी रा लाडला,
गया रा ग्वाल।
धर्म उबारण कारण,
लियो मनुज अवतार,
मेरी भव बाधा हरो,
करुणामय करतार।।
जय जम्भेश्वर जय भगवान,
भक्त वसल प्रभु दीनदयाल।।
के मुखारविंद - सच्चिदानंद जी लालासर साथरी
प्रेषक - सुरेश बिश्नोई जोधपुर