चली चली रे दरस को मैं चली रे,
चली कान्हा जी की ओर,
थामे भक्ति की डोर,
चली बाँके बिहारी की गली रे,
चली चली रे दरस को मैं चली रे........
कान्हा मंद मंद मुसकाये,
नयनों से बाण चलाये,
निरखि अद्भुत श्रृंगार,
गयी दिल मैं तो हार,
तोरी मोहिनी सूरत लागे भली रे,
चली चली रे दरस को मैं चली रे........
कान्हा कैसी प्रीत लगायी,
मन तड़पत मीन की नाईं,
तेरी लीला है अपार,
हुआ तुमसे यह प्यार,
हमरी अँखियाँ हैं जब से ये मीली रे,
चली चली रे दरस को मैं चली रे..........
तुम्हे छोड़ कहाँ अब जाऊँ,
तेरा हरपल दरसन पाऊँ,
सुन मेरे सरकार,
चाहूँ तेरा दीदार,
खड़ी द्वार जोड़े अंजली रे,
चली चली रे दरस को मैं चली रे........
आभार: ज्योति नारायण पाठक