अमृत बेला गया

अमृत बेला गया आलसी सो रहा बन आभागा,
साथी सारे जगे तू न  जागा ,
झोलियाँ भर रहै भाग्य वाले, लाखो पतितो ने जीवन सम्भाले
रंक राजा बने, प्रभु रस में सने कष्ट भागा साथी सारे,
अमृत बेला गया.......

प्रभु कृपा से नर तन यह पाया, अलसी बनकर यू ही गवाया
उल्टी हो गई मती, कर ली अपनी छती,
चोला त्यागा साथी सारे,
अमृत बेला गया....

स्वास एक एक अनमोल बीता,
अमृत के बदले वि श को तू पीता,
सौदा घाटे का कर, हाथ माथे पे धर,
रोने लगा साथी सारे  जगे,
अमृत बेला गया......

मानव कुछ भी न तूने बिचारा ,
सिर से ऋषियो का रद न उतारा,
गुरु का नाम न लिया,  
गंदा पानी पीया बन के कागा,
साथी सारे जगे अमृत बेला गया
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