साई मुझको देखना है के तू कितना मेहरबान है,
ये मेरा इम्तेहान नहीं तेरा इम्तेहान है,
गिरती रही चमन पे ज़माने की बिजलियाँ,
तेरे कर्म से बचता रहा मेरा आशियाँ,
अब तू बता मैं क्यों न कहु सबसे तू महान है,
ये मेरा इम्तेहान नहीं तेरा इम्तेहान है,
तूफ़ान को भी तेरी दया मानता हु मैं,
तेरी रजा अटल है इसे जनता हु मैं,
जिस घर मर तेरा जाप नहीं,
घर नई मकान है,
ये मेरा इम्तेहान नहीं तेरा इम्तेहान है,
साई के हर कलाम को फैला रहे हम,
साई सफर में बढ़ते चले जा रहे है,
अब दिल में कोई प्यास है न पाँव में थकान है,
ये मेरा इम्तेहान नहीं तेरा इम्तेहान है,