कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सिखा दो,
हिंय धरि हरी दरसन नित पाऊँ,
मोरे मन बीच अलख जगा दो,
कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सिखा दो.....
हिय धरि प्रभु अधरन गुण गाउँ,
मोहें मधुरम गीत लिखा दो,
कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सिखा दो....
हिय धरि माधव सुख दुख बाटूँ,
मोहें मन का मीत बना दो,
कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सीखा दो.....
हिंय धरि केशव मांगउँ भक्ती,
मोहें भव से पार लगा दो,
कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सीखा दो.....
आभार: ज्योति नारायण पाठक