होरी हौ होरी
धीर समीरे यमुना तीरे बजे बाँस की पोरी।
लूट लई बृज बरसाने की गोरी भोरी छोरी।
साँवरे छैला ने दई नैन पिचकारी।
दई नैन पिचकारी मुरारी छैला ने।
नटखट परम चतुर ग्वाले ने घेरी भोरी भारी।। साँवरे...
मैं नन्द गाँव को रसिया तू बरसाने वारी।। साँवरे...
मैं हूँ कृष्णचन्द्र या बृज को तू मेरी उजयारी।। साँवरे..
मैं भँवरा तू खिली कमलिनी मैं मछली तुम बारी।। साँवरे..
जोरी बनी हमारी तुम्हारी तीन लोक ते न्यारी।। साँवरे...
भागत ते ये फागुन आयो खेलो निकस अटारी।। साँवरे..
हँस हँस कहत नाच मोरे संग में अहो वृषभान दुलारी।। साँवरे..
मोहन मोहनी रसिक रसिकनी मैं प्यारो तुम प्यारी।। साँवरे...'
हरि' वावरे या जोरी पर बार बार बलिहारी।। साँवरे ।160।।