मंदिर में अपने हमे रोज भुलाते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमे रोज भुलाते हो,
हमेशा हम ही आते है फ़र्ज़ तेरा भी आने का,
कभी प्रेमी के घर पे भी कन्हियाँ खाना खाने का,
प्रेम निभाने में तुम क्यों शरमाते हो,
मंदिर में अपने हमे रोज भुलाते हो,
कमी है प्यार में मेरे या हम लायक नहीं तेरे,
बता दो खुल कर ये कान्हा बात मन में हो जो तेरे,
दिल की कहने में तुम क्यों गबराते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमे रोज भुलाते हो,
तुम्हारे भक्त है लाखो तुम फुर्सत नहीं होगी,
क्या कभी मोहित इस दिल पूरी हसरत नहीं होगी,
रह रह के हम को तुम क्यों तड़पते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमे रोज भुलाते हो,