कष्ट है कितना कावड़ियों को ये जानन की ठानी,
बदल गए औघड़ दानी बदल गए औघड़ दानी
छोड़ कर बागमकर का चोला पीले कपडे पहन लिए,
सुल्तानी गंज से कँवर लेकर अपनी नगरियां चल दिए,
गणपति कार्तिक नंदी बरंगी संग में गोरा रानी,
बदल गए औघड़ दानी....
कांवरियों के संग में मिल कर भांग की गोली खाई है,
हर हर बम बम कह कर के चिलम एक चढाई है,
धीरे धीरे च; रहे बोला शलकत जाए पानी,
बदल गए औघड़ दानी......
देख के अपने भगतो को भोले दानी फूल गये,
मैं ही खुद शिव शंकर हु अपने आप को भूल गये,
मनु इतने में चूब गया कांटा याद आ गई नानी,
बदल गए औघड़ दानी