तर्ज - जहाँ डाल डाल पर सोने की
चन्द्रमा जिनका भाल सजाये और जटा में गंगा समाये
वो हैं भोले भंडारी ॥
तन पे अपने भस्म रमाये और गले में सर्प लिपटाये और गले में सर्प लिपटाये
सृष्टि की रक्षा हेतु पी गए जो विष भारी
वो है भोले भंडारी ॥
जब शिव शंकर का डमरू बजे , धरती और गंगन भी नाचे
संग में उनके गण भी नाचे ,नाचे सृष्टि सारी
वो है भोले भंडारी ॥
शिव शंकर की अजब है माया सरे जहाँ को मोह में रमाया
स्वयं के मन को मोह से बचके बन बैठे बैरागी
वो है भोले भंडारी ॥