मुरली वाले सुनियो जी एक सवाल दीवाने का,
अगर समझ में आ जाए भक्तों को समझाने का,
हमने अपना नियम निभाया खाटू आने जाने का,
श्याम तेरा क्या फर्ज नहीं भक्तों के घर आने का,
जिसका घर छोटा सा हो क्या उसके घर नहीं जाते,
रोटी रूखी-सूखी हो क्या उसके घर नहीं खाते ,
क्या मेरा हक नहीं बनता है तुम को घर में बुलाने का,
श्याम तेरा क्या फर्ज नहीं भक्तों के घर आने का,
नियम यही है दुनिया का दुश्मन के घर नहीं जाते,
या फिर छोटी जात का हो करके बहाना टरकाते,
इसके अलावा कोई भी हो नियम है आने जाने का,
श्याम तेरा क्या फर्ज नहीं भक्तों के घर आने का,
जिसका जिसका घर देखा वह क्या तेरे लगते थे,
रिश्तेदारी में कान्हा वह क्या हमसे बढ़के थे,
इतना बता दो क्या लोगे तुम उनके जैसा बनाने का,
श्याम तेरा क्या फर्ज नहीं भक्तों के घर आने का,
ऐसा रास्ता ढूंढ लिया रोज मिलेंगे बनवारी,
दंग रह जाएगा कान्हा देख मेरी तू समझदारी,
सोच लिया है हमने भी घर खाटू में बनवाने का,
श्याम तेरा क्या फर्ज नहीं भक्तों के घर आने का,
रचना-श्री बनवारी जी
स्वर-श्री जय शंकर जी चौधरी