जो रंग बरस रह्यो

जो रस बरस रहा बरसाने, सो रस तीन लोक में नाँय
तीन लोक में नाँय, सो रस बैकुंठहु में नाँय ॥
जो रस ....

सँकरी गली बनी पर्वत में,
दधि बेचति राधिका डगर में,
श्याम की गाय चर रहीं बन में,
दीने सखा सिखाय ॥
जो रस ....

दे जा दान कुँवरि मोहन को,
तब छोड़ेंगे दधि-माखन को,
राज है यहाँ मनमोहन को,
दान लेंयगे धाय ॥
जो रस ....

राधा संग सखी मदमाती,
कान्हा संग सखा उतपाती,
घेर लईं ग्वालन सरमाती,
मन में अति हरषाँय ॥
जो रस ....

सुर-नर-मुनि सब की मति बौरी,
भज के चले बिरज की ओरी,
देखि-देखि या ब्रज की छोरी,
ब्रह्मादिक ललचाँय ॥
जो रस ....

संदीप स्वामी
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