तेरे बरसाने में जो सकूं मिलता है,
वो कहीं और मिलता नहीं लाडली,
तेरी करुणा का अमृत जो बरसे यहां,
वो कहीं न बरसता मेरी लाडली,
तेरे बरसाने में.....
यहां फूलों में खुशबू, तेरे नाम की,
चर्चा घर घर में है, श्यामा और श्याम की,
प्रेम भक्ति का जो रस छलकता यहां,
वो कहीं न छलकता, मेरी लाडली,
तेरे बरसाने में......
एक अजब सी ही मस्ती, हवाओं में है,
मीठी मीठी महक, इक फ़िज़ाओं में है,
मन का पंछी है, जैसे चहकता यहां,
वो कहीं न चहकता, मेरी लाडली,
तेरे बरसाने में....
कैसी अदभुत छटा, इन नज़ारों में है,
गूंजती बांसुरी, इन बहारों में है,
मन के उपवन में, जो फूल खिलते यहां,
वो कहीं और खिलता, नहीं लाडली,
तेरे बरसाने में...
श्यामा चरणों की रज में, वो तासीर है,
"दास" पल बदल देती, तकदीर है,
मेरा मन आ के, जैसे बहलता यहां,
वो कहीं न बहलता, मेरी लाडली,
तेरे बरसाने में.....
रचना : अशोक शर्मा "दास"
स्वर : श्यामा दासी (साक्षी)