आरती करूँ माँ जगदम्बा की, माँ सरस्वती, लक्ष्मी अम्बा की॥
करती है जो शेर सवारी। लाल वसन, कर गदा, कटारी॥
अष्टभुजी माँ वरदानी है। जया, अनंता, कल्याणी है॥
कोटि सूर्य सा तेज दमकता। चम-चम, चम-चम मुकुट चमकता॥
सदा दीन को दिया सहारा। संत जनो को पार उतारा॥
शुम्भ-निशुम्भ सभी रण हारे। चण्ड-मुण्ड तुमने संहारे॥
देवराज का मान बचाया। महिषासुर से त्राण दिलाया॥
भक्तों की इक पालनहारी। कृपा तुम्हारी दुनिया सारी॥
हम भी पुष्प भाव के लाए। हृदय-थाल में दीप जलाए॥
मातु भक्ति का वर दो हम को। हर लो मन में फैले तम को॥
दैत्य धूम्रलोचन को मारा। कर जयकार उठा जग सारा॥
चिता, चित्तरूपा, मन, भव्या। अनेकवर्णा, बुद्धि, अभव्या॥