मैं बन के कबूरत चीना तेरे भवनों की भरु उड़ान माँ,
यहाँ लाल ध्वजा लहराए तेरे भक्त करे गुणगान माँ,
मैं बन के कबूरत चीना ...
सो कोश की भरु उडारी,
दर्श को मेरी मात प्यारी,
पाँव में घुंगरू बाँध के नाचू जाऊ चरणों से बलिहारी,
कर्म तेरा जो मुझ पर हो जाए मिले मुझे पहचान नि माँ,
मैं बन के कबूरत चीना...
सन्मुख तेरा दर्शन पाउ तेरी भक्ति में रम जाऊ,
बन के तेरा लाल प्यारा तेरे अंचल में छिप जाऊ,
तेरी ममता की छाया में मिले मुझे समान माँ,
मैं बन के कबूरत चीना ..
जर जर बहते झरने,
मुस्काते है फूल भी मन में,
मोर पपीहा नाचे गाये शवि तेरी पाके कण कण में,.
जोगी लिखे वंदना तेरी राणा करे गुण गान नहीं माँ,
मैं बन के कबूरत चीना