मन रे ! तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने जिनका मोह करे
मन रे ! तू काहे ना धीर धरे
इस जीवन की चढ़ती ढलती धुप को किसने बाँधा
रंग पे किसने पहरे डाले रूप को किसने बाँधा
काहे ये जतन करे
मन रे ! तू काहे ना धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
ये सपना बिसरा दे
कोई ना संग मरे
मन रे ! तू काहे ना धीर धरे
मन रे ! तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने जिनका मोह करे
मन रे ! तू काहे ना धीर धरे