जिसकी आँखों से गहरा समुंदर नहीं,
श्याम सूंदर सा कोई भी सूंदर नहीं,
उड़े जाती निराली घुंघराली लटा,
जैसे भादो के सूरज की काली घटा,
मेरे बांके बिहारी की न्यारी छटा,
अति प्यारी छटा मत वरि छटा,
वनवारी सा देखा न मुंदर कही,
जिसकी आँखों से गहरा समुन्दर नहीं,
श्याम सूंदर सा कोई भी सूंदर नहीं,
नैन कजरारे अधरों पे रस पान है,
दांत मोती से फूलो सी मुश्कान है,
बोल मीठे लगे जैसे मिष्ठान है
ये तो पहचान है वो तो धन वान है,
ऐसा रंग दे सके रंग चुकंदर नहीं,
जिसकी आँखों से गहरा समुन्दर नहीं,
श्याम सूंदर सा कोई भी सूंदर नहीं,
जिसके चेहरे पे विखरा गज़ब नूर है,
मुख मंडल पे लाली माँ भरपूर है,
रूप देखा तो लागे कोहिनूर है,
बांका दस्तूर है हरी मगरूर है,
मेरे कान्हा सा दूजा मुजनदर नहीं,
जिसकी आँखों से गहरा समुन्दर नहीं,
श्याम सूंदर सा कोई भी सूंदर नहीं,
नजरे हटती नहीं सोहनी सूरत है वो,
मन को मोह ले जो मन मोहनी मूरत है वो,
सब ने बोलै बड़ा खूबसूरत है वो,
हां जरूत है वो सुबह महूरत है वो,
अपना करले बिजन जैसा हुनर नहीं,
जिसकी आँखों से गहरा समुन्दर नहीं,
श्याम सूंदर सा कोई भी सूंदर नहीं,